तीन साल बीतने के बाद भी कोरोना बढ़ा रहा टेंशन, संक्रमित होने के बाद लोगों में देखी जा रही है प्रोसोपैग्नोसिया की बीमारी!

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तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन कोरोना वायरस के केस लगातार आ रहे हैं. इस वायरस से संक्रमित होने के बाद लोगों में लंबे समय तक कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं हुई थी. संक्रमण से रिकवर होने के महीनों बाद तक कुछ लक्षण बने हुए थे. कोविड की वजह से हार्ट, लिवर किडनी जैसे ऑर्गन पर असर पड़ा था. कई लोगों को ये लॉन्ग कोविड की समस्या हुई थी, लेकिन अब इस वायरस के संक्रमितों में प्रोसोपैग्नोसिया की बीमारी भी देखी जा रही है. ये एक गंभीर डिजीज है जो कम ही लोगों को होती है.

इस डिजीज की वजह से किसी इंसान के चेहरे को पहचानने में काफी परेशानी होती है. आम भाषा में इसे फेस ब्लाइंडनेस भी कहा जाता है. जर्नल कोर्टेक्स में पब्लिश हुई एक रिसर्च में इस बात का दावा किया गया है. हालांकि ये डिजीज काफी रेयर है, लेकिन इसको कोविड का ही प्रभाव माना जा रहा है.

क्या होती है प्रोसोपैग्नोसिया
ये एक ऐसी बीमारी होती है जिससे पीड़ित व्यक्ति अपने जानने वाले लोगों तक के चेहरे नहीं पहचान पाता है. हालांकि इस डिजीज के केस काफी कम आते हैं. WHO ने प्रोसोपैग्नोसिया को रेयर डिजीज के ग्रुप में रखा है. दुनियाभर में केवल एक से दो फीसदी लोगों में ही इस बीमारी केस आते हैं. अमेरिका में एक महिला में कोविड के बाद ये परेशानी देखी गई है. ये महिला अपने परिचित लोगों के चेहरे भी नहीं पहचान पा रही है. इस रिसर्च के लेखक प्रोफेसर ब्रैड डचेन का कहना है इस महिला वे ये लक्षण दिखे तो बीमारी की पहचान हुई. ये दिमाग पर कोविड के असर से हो सकता है. इसको देखते हुए पीड़ित महिला के लक्षणों और बीमारी के बारे में अधिक जानकारी जुटाई जा रही है.

कोविड से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ राजेश कुमार ने बताया कि कोविड के कई मरीजों में संक्रमण से रिकवर होने के बाद न्यूरोलॉजिकल समस्याएं देखी गई हैं. लोगों में भूलने की समस्या और ब्रेन फॉग भी देखा गया है. हालांकि प्रोसोपैग्नोसिया किस कारणों से हुआ है. इसके बारे में कुछ भी साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है, लेकिन हो सकता है कि ब्रेन पर पडे़ असर की वजह से चेहरा पहचानने में परेशानी हुई है. हालांकि इसपर अभी और रिसर्च करने की जरूरत है. ऐसी परेशानी और कितने लोगों को हो रही है ये भी जानना चाहिए.


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