लखनऊ में 28 सुभाष मार्ग (राजा बाजार) स्थित हवाई जहाज कोठी बनी है। इस कोठी में रस्तोगी परिवार की पांचवी पीढ़ी रह रही है और तीन भाइयों के बीच इसका बंटवारा है। पिता स्वर्गीय माधुरी शरण रस्तोगी ने इसे बड़ी ही उत्सुकता के साथ बनवाया था, लेकिन इस कोठी के तैयार होते ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई इमारतें ऐसी हैं जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनकी खूब चर्चा होती है। नवाबों में के शहर में बनी प्रसिद्ध इमारतें यहां की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती हैं। वहीं एक आवासीय भवन बना है, जिसे देखकर आपको लगेगा की या तो इसके ऊपर से हवाई जहाज गुजर रहा है या फिर लैंड हो गया है। दरअसल, लखनऊ में 28 सुभाष मार्ग (राजा बाजार) स्थित हवाई जहाज कोठी बनी है। इस कोठी में रस्तोगी परिवार की पांचवी पीढ़ी रह रही है और तीन भाइयों के बीच इसका बंटवारा है। यही वजह है तीनों भाई इस इमारत के एक-एक तल (फ्लोर) पर परिवार के साथ रहते हैं। वहीं तीन फ्लोर के लिए अलग-अलग बेल लगी है। यहां भूतल पर डॉक्टर रजनी कांत रस्तोगी, प्रथम तल पर कृष्ण कांत रस्तोगी और द्वितीय तल पर गंगा कांत रस्तोगी अपने परिवार के साथ रहते हैं।
दरअसल, साल 1955 में माधुरी शरण रस्तोगी बनवाने के लिए सोचा। उस दौरान वो दूसरे घर में रहते थे। लेकिन इस कोठी को तैयार करवाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया। तब जाकर ये भवन तैयार हो पाया। शनिवार को NBT ऑनलाइन की टीम स्वर्गीय माधुरी शरण रस्तोगी की इस मशहूर कोठी पर पहुंची। यह कोठी इतनी चर्चित है कि आप किसी से भी पूछकर बड़ी ही आसानी से वहां पहुंच सकते हैं। कहते हैं कि इस जिस तरह से राजधानी की सभी ऐतिहासिक इमारतों का कोई न कोई मिथक है ठीक उसी प्रकार से इसे भी एक उद्देस्य के तहत बनवाया गया था। रोहित रस्तोगी बताते हैं कि मेरे बाबा माधुरी शरण को हवाई जहाज बड़ा पसंद था। ऐसे में उन्होंने इस बेहतरीन इमारत को बनवाने का सोचा। महज 3 साल में ही ये कोठी बनकर तैयार हो गई थी। हालांकि, वो अपनी इस नायाब कोठी में रहने का सुख नहीं ले पाए और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
जहाज में बैठ सकते हैं 20-25 लोग
अगर इसकी विशेषता की बात करें तो सबसे ऊपर विमान के आकार की प्रतिकृति बनी है। प्रतिकृति अपनी नाक को आकार देने में पूरी तरह से तराशी हुई है, कोन वाले ब्लेड (लकड़ी से बने), पंख खिड़कियां, शरीर की पूंछ, प्रवेश और प्रवेश द्वार के साथ प्रोपेलर और यहां तक कि रिवेट्स को भी चित्रित किया गया है। जिससे की मूल विमान की तरह पेश किया जा सके। इसे देखकर ऐसा लगता है कि मानो विमान उड़ान भरने के लिए तैयार है। दिलचस्प बात ये है कि ये हवाई जहाज सिर्फ दिखाने के लिए नहीं है, बल्कि इसमें 20 से 25 लोग बैठ भी सकते हैं। हवादार होने की वजह से इसके अंदर घुटन भी महसूस नहीं होती है। रोहित ने बताया कि मेरे बाबा इसे बनाकर लोगों का ध्यान तो खींचना चाहते ही थे। साथ में अपने परिवार को भी हवाई जहाज की तरह आसमान की बुलंदियों को छूने का मैसेज देना चाहते थे। कहा जाता है कि ये जहाज वाली कोठी भारत में अपनी तरह की इकलौती इमारत है।
2017 में कराया गया जीर्णोधार
रोहित ने बताया कि आजकल के घरों से अलग इस 3 मंजिला कोठी में गोल आंगन मौजूद था। साथ ही ये कोठी अपने समय से काफ़ी आगे थी। सिल्वर पेंटेड इस हवाई जहाज में लाइट और प्रोपेलर्स भी लगे थे। प्रोपेलर्स को पुली से जोड़ा गया था, जिसे मोटर के जरिए चालू भी किया जा सकता था। बाद में धातु के बने प्रोपेलर्स खराब हो जाने के बाद इन्हें लकड़ी के प्रोपेलर्स से बदल दिया गया। बता दें कि समय के साथ इसमें काफ़ी बदलाव आ चुके हैं। अब यहां रिसाइज़्ड कमरे हैं, गोल आंगन मौजूद नहीं है हालांकि, कोठी का पीछे का हिस्सा आज भी पहले जैसा ही है। कोठी बड़ी होने की वजह से काफी सालों तक इसकी रंगाई पुताई नहीं हुई थी, लेकिन साल 2017 में जब माधुरी शरण के पोते की शादी थी, उस दौरान इसमें काम कराया गया। कोठी इतनी विशाल है कि सिर्फ बाहरी हिस्से और जहाज की आकृति को पेंट कराने में करीब 3 लाख रूपए लगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कोठी कितनी बड़ी होगी।