रुद्रपुर में प्रशासन की अतिक्रमण हटाने की दोहरी नीति! मेडिसिटी हॉस्पिटल के पैसे के आगे क्या बोने साबित हुए उच्च न्यायालय सहित सहायक कलक्टर के आदेश? क्या बस गरीबो के अतिक्रमण हटाने तक सक्रिय है प्रशासन?

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रुद्रपुर का मेडिसिटी हॉस्पिटल बना तो रुद्रपुर और आस पास के क्षेत्रों के इलाज और सहूलियत के लिए था पर वहीं इसकी नीव प्रकृति का गला घोंट कर रखी गई थी। जहाँ ना केवल नियमों को ताक पर रखा गया था बल्कि कानून की भी खुल कर धज्जियाँ उड़ाई गई। और इन सब में तत्कालीन अधिकारीयों नें भी हॉस्पिटल के मालिक का भरपूर साथ दिया और उसके बाद भी आज तक प्रशासन इसके सामने बोना ही साबित हुआ है। जो आज तक ना उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप कार्य कर पाया और ना तत्कालीन सहायक कलक्टर के आदेश के बाद मेडिसिटी हॉस्पिटल के अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्यवाही ही हुई। बता दें कि मेडिसिटी हॉस्पिटल नें अपनी आलिशान ईमारत के नीचे जहाँ प्राकृतिक गूल ( छोटी नहर ) को दफ़न कर दिया हैं वहीं नदी/ नहर पर भी अतिक्रमण कर उसके अस्तित्व को ख़त्म सा कर दिया है जिसका कारण है कि हर बार मानसून में वो इलाका जल भराव और वहां के लोग बड़े हुए जलस्तर के चलते अपनी फसलों और घरों को बर्बाद होते हुए देखने के सिवा कुछ नहीं करते।

यहाँ ये कहना गलत नहीं होगा कि प्रशासन अपने अतिक्रमण हटाने की मुहीम में जो एक तरफा कार्यवाही करता है वो अपने आप में कई बार सवाल खड़े कर देता है जहाँ आम गरीब तो बुलडोजर के नीचे अपना सब कुछ खो देता है पर वहीं दूसरी तरफ पूँजीपति के पैसे आगे प्रशासन अपना पूरा वजूद खो देता है। आज ऐसा लगता है नियम और कानून गरीबों को सीमित दायरों में रखने के लिए ही बने हैं और वहीं पूंजीपतियों के लिए ये नियम-कानून, उनके बनाने वाले और उनका पालन करवाने वाले सभी उनके दरबान बने नजर आते हैं।

मेडिसिटी हॉस्पिटल के अतिक्रमण पर हाई कोर्ट का आदेश।

मेडिसिटी हॉस्पिटल के अतिक्रमण के खिलाफ वर्ष 2017 में एक PIL लगाई गई जिसमें उस समय निर्माणाधीन हॉस्पिटल के नीचे हॉस्पिटल के मालिक डॉ. दीपक छावड़ा नें प्राकृतिक गूल ( छोटी नहर ) को दबा कर उनका अस्तित्व ही ख़तम कर दिया ये ही नहीं इस सब में हॉस्पिटल मालिक नें पैसे के दम पर कई विभागों से NOC भी ले ली। पर उच्च न्यायालय नें 25-09-2018 को जिला कलक्टर को 8 हफ्ते में उनकी एप्लीकेशन ( जमीन के विनिमय ) को कानून के अनुरूप सुनने और अगर हॉस्पिटल की एप्लीकेशन कानून के अनुरूप नहीं पायी गई तो उस अतिक्रमण पर पूर्व में तहसीलदार के द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार कार्यवाही करने का आदेश दिया। जिस पर तत्कालीन सहायक कलक्टर विशाल मिश्रा नें वर्ष 2021 में अपना आदेश उदघोषित किया।

सहायक जिला कलेक्टर नें भी माना तहसीलदार की रिपोर्ट को सही।

बता दें कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ऊधमसिंह नगर के तत्कालीन सहायक कलक्टर विशाल मिश्रा नें दिनांक 9-7-2021 को डॉ. दीपक छावड़ा द्वारा हॉस्पिटल के नीचे दबाई गई प्राकृतिक गूल (छोटी नहर ) वाली जमीन को अन्य जमीन के टुकड़ो में स्थानांत्रित करने की एप्लीकेशन को ख़ारिज करते हुए तत्कालीन तहसीलदार को ये निर्देश दिए कि वह मौके का स्थलीय निरिक्षण/ परिक्षण करें, यदि गूल पर किसी प्रकार का अवैध/ अनाधिकृत निर्माण किया गया है, तो सम्बंधित विभाग यदि कोई हो तो उनसे संपर्क स्थापित करते हुए अतिक्रमण हटाए जाने की आवश्यक कार्यवाही करें।

सभी आदेश हुए फ़ाइलों में दफन।

यहाँ ये सोचने वाली बात है कि आँखिर कैसे पैसे के दम पर हॉस्पिटल मालिक नें प्रशासन को भी अपना गुलाम बना लिया है।कि जहाँ एक तरफ उच्च न्यायालय के आदेश की तो वहीं कलक्टर के आदेश की भी ना केवल अनदेखी हुई और बल्कि उन आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। और पैसे के दम पर डॉ दीपक छावड़ा नें बेखौफ हो कर ना केवल नदी/ नहर पर अतिक्रमण किया बल्कि वहीं प्रकृति का हनन करते हुए अपने विशालकाय अस्पताल के नीचे गूल ( छोटी नहर ) को भी हमेशा के लिए दफ़न कर दिया। और प्रशासन मूक दर्शक बन आज भी मानसून के प्रकोप को बस अपने द्वारा लिए जा रहे हवाई आंकड़ों में दर्ज भर कर रहा है।

उठ रहे हैं कई सवाल!

मेडिसिटी हॉस्पिटल द्वारा किए गए नदी/ नहर पर अतिक्रमण और उसके नीचे दफ़न गूल ( छोटी नहर ) पर अतिक्रमण को हटाने के आदेश के बाद भी कोई कार्यवाही ना होना कई सवाल खड़े कर रहा है। क्या ये युवा प्रदेश पूँजीपतियों के हाथों विनाश की बैठ चढ़ता जा रहा है? क्या उत्तराखंड जो की प्रकृति का एक नायब तोहफा लिए हुए है उसका चीर हरण यहाँ के पूँजीपति और सत्ता और प्रशासन के उच्चअधिकारी मिल कर करते जा रहे हैं? आँखिर डॉ दीपक छावड़ा पर किस नेता का आशीर्वाद है जिसके बल पर डॉ दीपक छावड़ा आज भी निरंकुश और निर्भीक सभी नियम और कानूनों का मज़ाक बनाए बैठे हैं? क्या प्रशासन केवल गरीबों और आम जन मानस के द्वारा किए गए अतिक्रमण पर ही कार्यवाही करने को सक्रिय रहता है और पूँजीपतियों के हाथों कि कठपुतली भर बन के रह गया है? कैसे मेडिसिटी हॉस्पिटल के अतिक्रमण हटाने के आदेश की फ़ाइल कहीं खो गई या किसने उसे ठंडे पैसे के बल पर ठंडे बस्ते में डाल दिया? कई सवाल हैं जो आज सरकार और प्रशासन की ओर मुँह उठाए खड़े हैं और सरकार की दोहरी नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रहे हैं।


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