भले ही कांग्रेस ने एक के बाद एक दो किले फतेह कर लिए हों और बीजेपी को 2024 लोकसभा से पहले हिमाचल और कर्नाटक में अपनी सत्ता गवानी पड़ी हो पर वहीं महारास्ट्र में बीजेपी ने अपनी राजनीती का ऐसा समीकरण बनाया कि कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी खुद अपने कुनबे को ही नहीं बचा पाए। जिसका सीधा कारण उनके विधायकों में फैले असंतोष को माना जा रहा है।
ऐसी ही सुगबुगाहट उत्तराखंड कांग्रेस के भीतर दिखाई दे रही है जहाँ कांग्रेस कई गुटों में बटी नज़र आ रही है एक तरफ जहाँ यशपाल आर्या का गुट है तो वहीं दूसरी और हरीश रावत गुट है। इस गुटबाजी की चिंगारी 2022 में हुए उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों से ही होने लगी थी पर पिछले एक साल में ये चिंगारी पूरी तरह से आग पकड़ चुकी है। जहाँ प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा भी कहीं इस आग को नहीं बुझा पा रहे हैं।
ऊधम सिंह नगर की बात करें तो तराई के शेर कहे जाने वाले और किच्छा से विधायक तिलक राज बेहड़ अपने प्रदेश नेतृत्व से खासे नाराज दिखाई दे रहे हैं। जहाँ पूर्व में विधायक तिलकराज बेहड़ कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे और पूरे उत्तराखंड में एक अलग पहचान रखते हैं पर वहीं उनकी पार्टी में उनकी अनदेखी से वो खासे नाराज हैं। अटकलों और अफवाहों का बाजार तो यहाँ तक गरम है कि तिलक राज बेहड़ अपनी अनदेखी से इतने नाराज हैं कि हों सकता है वो अपने कुछ अन्य कांग्रेस विधायक साथियों के संग कांग्रेस को अलविदा कह उत्तराखंड में बीजेपी को समर्थन दे सकते हैं। सूत्रों कि माने तो विधायक तिलकराज बेहड़ जल्द ही अपनी नाराजगी केंद्रीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के सामने रख सकते हैं अगर वहाँ भी उनकी बातों को अगर अनदेखा किया गया तो उत्तराखंड कांग्रेस एक बड़ी टूट को देख सकती है।
हाल के दिनों में जिस तरह कांग्रेस विधायक तिलकराज बेहड़ अपने ख़राब स्वास्थ्य से जूझ रहे थे वहीं उनको देखने वालों में जहाँ बीजेपी के शीर्ष नेता और मंत्री उनके निवास पर सबसे पहले पहुँचे थे वहीं कांग्रेस के शिर्ष नेताओं कि अनदेखी और अब उनके स्वास्थ्य लाभ के बाद भी पार्टी में उनके कद को दरकिनार करने से विधायक तिलक राज बेहड़ काफी नाराज दिखाई देते हैं । और अब उनके देहरादून के दौरों में जहाँ वो मुख्यमंत्री से भी मिले कई राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं।
अब देखना ये होगा कि क्या उत्तराखंड कांग्रेस जो पहले ही धरातल पर अपने कार्यकर्ताओ से विहीन है वहीं अब शीर्ष नेताओं में भी असंतोष को वो कैसे मैनेज करती है अगर ऐसा नहीं हुआ तो 2024 लोकसभा चुनावों से पहले उत्तराखंड कांग्रेस को एक बड़ा झटका उत्तराखंड में लग सकता है।