आज यौन उत्पीड़न को लेकर चल रहे देश के कुछ खिलाड़ियों का विरोध प्रदर्शन हरिद्वार पहुंच गया। पिछले कई दिनों से दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठ कर विरोध प्रदर्शन करने वाले हमारे देश के पहलवानों पर भी कई सवाल उठते हैं। अपने विरोधियों को खेल के मैदान में धूल चटाने वाले पहलवान, अपनी सूझ बूझ और अपने बाजुओं का लोहा पूरे विश्व में मनवाने वाले पहलवान क्या उस समय कमजोर पड़ गए जब उन के साथ ये घिनोना कृत्य हों रहा था? क्या उस समय ये पहलवान मानसिक रूप से इतने कमजोर पढ़ गए थे कि उस समय वो आवाज नहीं उठा पाए परन्तु उसके बाद देश के लिए मैडल जीत कर ले आए। यहाँ ये बता दूँ कि एक खिलाड़ी को खेल के मैदान में अपने विरोधी को हराने के लिए हर पहलू से मजबूत होना पड़ता है फिर चाहे वो मानसिक रूप से हों या शारीरिक रूप से हों। इसलिए ऐसे कई सवाल है जो उठते हैं…
अगर मान भी लें कि उस समय उनकी आवाज को दबा दिया गया तो फिर उसी मंच से पदक जीतने के बाद ऐसी कौन सी ताकत उन्हें मिल गई कि अब वो पहलवान उस सम्मान और मैडलो को ताक में रख कर बीच रोड पर अपनी आवाज उठाने के लिए एकजुट हों गए? ये एकजुटता तब क्यू नहीं आई जब आज उनके साथ गलत दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं घटित हुई थी। पर अब इस तरह सरे राह हमारे पहलवान अपने देश और अन्य पहलवानों कि छवि को जिस तरह से धूमिल कर रहे हैं वो अपनी आप में कई सबाल खड़े करता है।
और फिर एक साथ कई टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्यों का उनके साथ एक मंच पर आना और देश विरोधी नारे लगाना और जब उन नारों कि आवाज आम जन तक पहुंची तो एक दम से उनका गायब हों जाना क्या ये किसी षड़यंत्र कि और इशारा नहीं करता? आखिर कौन इस षड्यंत्र का सूत्रधार है ?
गंगा में अपनी मैडल बहा के क्या साबित करना चाहते हैं हमारे देश के पहलवान? कौन सी सदभावनाएं बटोरना चाहते हैं ये पहलवान? अगर इन उपलब्धियों का जिन्हें उन्होंने सालों कि तपस्या के बाद अर्जित किया है, उनका कोई मान ही नहीं तो उसके लिए तो क्यू इतनी दूर हरिद्वार उन्हे आना पड़ा, ये मैडल तो गढ़ गंगा में भी बहाए जा सकते थे… और दिल्ली में ही बहती यमुना में भी इन्हें बहाया जा सकता था। फिर इस नाटक का अगला मंच कौन और किस नियत से उत्तराखंड के हरिद्वार में तैयार कर रहा है?