अमेठी के आरिफ इन दिनों चर्चा में बने हुए हैं. उनसे भी ज्यादा चर्चा में बना हुआ है उनका जिगरी यार सारस. फिलहाल सारस और आरिफ को अलग कर दिया गया है. खबर है कि आरिफ से जुदाई के गम में सारस ने खाना-पीना भी छोड़ दिया है. उसे पहले समसपुर पक्षी विहार रखा गया. यहां वह अपने दोस्त आरिफ की तलाश में उड़कर नजदीकी गांव जा पहुंचा. इसके बाद उसे कानपुर चिड़ियाघर में रखा गया है.
क्या है पूरा मसला?
मसला शुरू हुआ 7 महीने पहले. अगस्त 2022 में आरिफ की मुलाकात सारस से हुई. सारस उस समय जख्मी था. आरिफ ने उसकी मरहम-पट्टी कर जान बचाई. सारस आरिफ के साथ ही रहने लगा. दोनों की दोस्ती के कई वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए. आरिफ और सारस से मिलने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी पहुंचे थे. दोनों की जोड़ी खूब लोकप्रिय हो रही थी. इस बीच 21 मार्च 2023 को उत्तर प्रदेश वन विभाग की एंट्री हुई. वन विभाग ने सारस और आरिफ को जुदा कर दिया.
आरिफ पर कार्रवाई सही या गलत?
आरिफ-सारस की जुदाई पर लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. कई लोग सारस को वापस आरिफ के पास लाने की अपील भी कर रहे हैं. यहां हम बताएंगे कि क्या आरिफ का सारस को रखना गैरकानूनी था? आरिफ पर वन विभाग ने किस अधिनियम के तहत कार्रवाई की. उनकी कार्रवाई कितनी प्रासंगिक है.
वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में लिखा हुआ है कि किसी भी आम नागरिक की ड्यूटी है कि पर्यावरण, वन संरक्षण और और वन्यजीव संरक्षण में अपनी भूमिका अदा करें. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत जिन पशु-पक्षियों के पालन पर पाबंदी है, उनमें सारस भी शामिल है. ऐसे में आरिफ को सारस का उपचार करके तुरंत वन विभाग या पुलिस को 48 घंटे के अंदर सूचित करना चाहिए था. हालांकि आरिफ ने इस बारे में वन विभाग को कोई जानकारी नहीं दी.
आरिफ पर लगे हैं ये आरोप?
आरिफ पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 का उल्लंघन करने के आरोप में धारा 2, 9, 29, 51 और धारा 52 के तहत केस दर्ज किया गया है. एक्ट की धारा 51 के मुताबिक, अपने मनोरंजन के लिए किसी पशु-पक्षी या जानवर की जिंदगी से आप खिलवाड़ नहीं कर सकते. दोषी को 7 साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
पशु-पक्षी के साथ खिलवाड़ पर्यावरण के लिए गलत
अजय दुबे के मुताबिक, वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत पालतू जानवरों को छोड़ अन्य पशु-पक्षियों को अपने पास रखना गलत होता है. इस एक्ट का मकसद है कि पशु-पक्षी नेचुरली खुद से फीड करें. इंसान अगर उन्हें फीड करता है तो उनकी आदत और फूड साइकिल बदलती है. यही वजह है कि सड़कों पर बंदरों को भी खिलाना-पिलाना अपराध माना गया है. क्योंकि आपके इस कदम से उनकी प्राकृतिक संरचना में दखल होता है. प्राकृतिक संरचना में बदलाव का असर पर्यावरण पर भी पड़ता है. ऐसा होना पशु-पक्षी के जीवन के साथ-साथ इंसानों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. वन्य जीवों के प्राकृतिक संरचना में बदलाव के चलते कई बीमारियां भी दस्तक दे सकती हैं.
पशु-पक्षियों के अधिकारों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य
अजय दुबे आगे बताते हैं कि एक तरह से सारस की जिंदगी बचाना उसका कर्तव्य था, लेकिन उसे अपने पास रखना गलत था. इससे अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे थे. ऐसे में अगर भावुक होकर आरिफ को छूट दी गई तो ये गलत उदाहरण होगा. सरकार जब वाइल्डलाइफ एक्ट लेकर आई थी तो उसकी मंंशा जानवरों का शिकार रोकना था. यह फैसला आगे चलकर सही साबित हुआ. ऐसे में अगर वाइल्डलाइफ एक्ट में किसी पशु-पक्षी को कैद करने पर प्रतिबंध है, तो उनके अधिकारों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य भी है. इनमें बाघ, चीता, भालू जैसे जंगली जानवर तो हैं ही, इसके अलावा तोता, मोर, बत्तख (कुछ प्रजातियां), तीतर, उल्लू, बाज, ऊंट, बंदर, हाथी, हिरन, सफेद चूहा, सांप, मगरमच्छ, एलिगेटर और कछुआ जैसे पशु-पक्षी हैं, जिनके पालन पर प्रतिबंध है.
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत की जाती है पशु-पक्षियों की अधिकारों की रक्षा
डिप्टी डायरेक्टर, वन विभाग मध्य प्रदेश सुनील सिन्हा कहते हैं कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में 66 धाराएं और 6 अनुसूचियां हैं. इन अनुसूचियों के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा की जाती है. पहली अनुसूची में जंगली जानवरों और पक्षियों को सुरक्षा मिलती है. इस सूची में 43 वन्यजीव शामिल हैं. इन जीवों के शिकार पर 3 से 7 साल तक की सजा हो सकती है. वहीं, अनुसूची 2 में शामिल जानवरों के शिकार पर भी 3 से 7 साल तक की सजा पर प्रावधान है. अनुसूची 3 और 4 में उन जानवरों को रखा गया है, जिनके साथ अपराध में सजा का प्रावधान कम है. वहीं अनुसूची 5 में वे जानवर हैं, जिनका शिकार किया जा सकता है. अनुसूची 6 में दुलर्भ पौधों की खेती और रोपण पर रोक लगाई गई है.
कुत्ते से लेकर मछली पालन पर भी करना होता है ये काम
भारत में लोगों को कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैस, बकरी, कबूतर (कुछ प्रजाति), भेड़, खरगोश, मुर्गा, छोटी मछली के पालन की अनुमति दी गई है. अगर आप इनको भी पालते हैं तो कानूनन आपको इसकी जानकारी नगर निगम को देनी होती है. सालाना फीस भरकर उसका रजिस्ट्रेशन भी कराना चाहिए. इसके अलावा मवेशी या जानवर पालने के लिए मिले लाइसेंस का हर साल नवीनीकरण भी कराना चाहिए.