उत्तराखण्डः पंतनगर के नगला में अतिक्रमण हटाने का मामला! तो क्या प्रशासन ने लिया एकतरफा निर्णय, पुराने दस्तावेज बयां करते हैं बहुत कुछ!

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पंतनगर के नगला से जुड़ा एक बड़ा मामला सामने आया है। यहां करीब 700 परिवारों पर बेदखली की तलवार लटकी हुई है और हाईकोर्ट के निर्देश पर जिला प्रशासन द्वारा लोगों को बेदखली का नोटिस दिया जा चुका है। जिला उधम सिंह नगर की किच्छा तहसील के अंतर्गत आने वाले राजस्व ग्राम नगला के निवासी लगातार अपने घर और रोजी रोटी को बचाने के लिए कभी सीएम धामी के दरबार में फरियाद लगा रहे है तो कभी न्यायालय की शरण में पहुँच रहे है, लेकिन फिलहाल उन्हें कहीं से कोई आस नजर नहीं आ रही है। जिला उधम सिंह नगर की किच्छा तहसील के अंतर्गत आने वाले राजस्व ग्राम नगला को उजाड़ने के लिए जिला प्रशासन कमर कस चुका है नगला निवासी लगातार अपने घर और रोजी रोटी को बचाने के लिए कभी सीएम धामी के दरबार में फरियाद लगा रहे है तो कभी न्यायालय की शरण में पहुँच रहे है लेकिन सुनवाई कहीं नहीं हो पा रही है ।

वर्तमान में नगला मार्ग


मामले के अनुसार 50 वर्ष पूर्व बना नगला जहां पर्वतीय क्षेत्रों के भूस्खनल और नदियों में आई बाढ़ से प्रभावित लोग जिनके पास सर छुपाने को आसरा नहीं था वो लोग नगला में आकार बसने लगे और नगला धीरे धीरे आबाद होता चला गया । नगला जो कि पंतनगर के समीप बरेली नैनीताल राज्य राज्यमार्ग (State Highway) के दोनों तरफ बसा हुआ राजस्व ग्राम है । वर्ष 2021 में हल्द्वानी निवासी अमित पांडे के द्वारा उच्च न्यायालय में लगाई गयी जनहित याचिका में कहा गया है कि नगला की भूमि जो कि लोक निर्माण विभाग ,तराई स्टेट फार्म और वन विभाग की है जिस पर अतिक्रमण किया गया है जिसे जनहित के लिए हटाना जरूरी है याचिका पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए मामले को PP एक्ट के तहत जिला प्रशासन को हस्तांतरित कर दिया । लेकिन जनहित याचिका में पुनः सुनवाई में न्यायालय को बताया गया कि आदेश के बावजूद प्रशासन ने अतिक्रमण को नहीं हटाया है और वर्तमान में सरकारी जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है जिस पर न्यायालय ने संग्यान लेते हुए वन विभाग जिला प्रशासन और तराई स्टेट फार्म को तलब करते हुए अतिक्रमण पर की गयी कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिये जिला प्रशासन ने न्यायालय को अवगत कराया कि उन्होने अतिक्रमण हटा दिये थे लेकिन स्थानियों के द्वारा दोबारा अतिक्रमण कर लिया गया है जिसको हटवाने के लिए कार्यवाही की जा रही है । जिसके बाद उच्च न्यायालय में रिपोर्ट पेश करने की जल्दबाज़ी में जिला प्रशासन ने पीपी एक्ट में चल रहे मुकदमे को बिना नगलावासियों को सुने एकतरफा निर्णय सुना दिया और सभी को 30 दिनों का समय देते हुए बेदखली के नोटिस थमा दिये जिसके बाद नगला निवासियों ने एकजुट होकर सीएम धामी से मुलाक़ात की और अब आदेश के खिलाफ न्यायालय जाने की तैयारी में है ।
जैसा कि लोक निर्माण विभाग कहता है कि फोरलेन हाइवे के लिए जमीन चाहिए इसलिए अतिक्रमण हटाना जरूरी है स्थानियों के अनुसार पूरब दिशा की तरफ अधिकतर घर राज्य राज्य मार्ग के केंद्र से 55 फीट की दूरी पर बने है जो कि फोर लेन बनाने के बाद भी प्रभाव नहीं डाल रहे चूंकि एक लेन लगभग 10.25 फीट का होता है इसलिए राज्य राज्यमार्ग में फोर लेन नाली,फुटपाथ डिवाइडर समेत बमुश्किल 60 से 65 फीट में बन जाता है । इसलिए लोक निर्माण विभाग केवल उतनी ही भूमि पर फोर लेन बनाए जितनी उनकी जरूरत है तो फोर लेन भी बन जाएगा और 700 परिवार भी बेघर होने से बच जाएंगे इसी तरह पश्चिम की तरफ बने घर दशकों पहले वन विभाग और तराई स्टेट फार्म के द्वारा निर्धारित की गयी सीमा से बाहर है और राज्य राज्यमार्ग के केंद्र से 55 फीट दूर है ।
नगला वासियों के द्वारा दिये गए दस्तावेजों से स्पष्ट है कि वर्ष 1966 में लोक निर्माण विभाग ने एक नक्शा तैयार किया था जिसमें राज्य राजमार्ग के केंद्र से दोनों तरफ 50 फीट भूमि लोक निर्माण विभाग की भूमि दिखाई गयी है पूरब की शेष भूमि राजस्व विभाग के खाता संख्या 348 और 315 में और पश्चिम की शेष भूमि खाता संख्या 310,311 व 313 में दर्ज़ है जिस पर नगला के 700 से अधिक परिवार गुजर बसर करते है । लेकिन वर्तमान स्थिति में लोक निर्माण विभाग ने बड़ी चालाकी से पूरब में रेलवे भूमि की बाउंड्री पिलर से 100 फीट पश्चिम तक लोक निर्माण विभाग की भूमि दिखा दी जिस वजह से पूरब में रह रहे लोगों के आवास लोक निर्माण विभाग की भूमि में आ गए और पश्चिम में बने आवास वन विभाग की भूमि में आ गए । स्थानियों के अनुसार जिला प्रशासन को नगला निवासियों बेघर करने के किए कूटरचित दस्तावेजों का सहारा ले रहा है जबकि पुराने सभी दस्तावेज़ दशकों से रह रहे लोगों की गवाही दे रहे है । 80 के दशक से लगातार नगला के नियमतिकरण के लिए आवाजें उठती हुई आ रही थी जिसके फलस्वरूप वर्तमान में बीजेपी सरकार के द्वारा नगला को नगर पालिका घोषित कर गज़ट में नोटिफ़ाइ कर दिया गया ।
नगला में रह रहे करीब 700 परिवार जिनके पास संपत्ति के रूप में एक छोटा सा घर है जहां वो रहते है और छोटा मोटा कारोबार चलाते है कई परिवारों में तो केवल बुजुर्ग ही बचे है जिन्हें आए दिन वन विभाग वाले अभद्रता करते हुए घर तोड़ने की धमकी दे जाते है । अलग अलग धर्मों और समुदाय के लोग आपसी सौहार्द से कई वर्षों से रहते हुए आए है जिनमें छोटे मझोले व्यवसायी से लेकर मजदूर वर्ग के सैकड़ों लोग है जो कभी आपदा के कारण ज़मीनों से वंचित हो गए थे और तत्कालीन सरकार की कृपा दृष्टि से आजतक बने हुए है लेकिन आज एक जनहित याचिका ने 700 परिवारों पर बेदखली की तलवार लटका दी है जो केवल बेदखली नहीं करेगी वरन कई ज़िंदगियों को लील जाएगी , सैकड़ों दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाएंगे । और ये सब एक जनहित याचिका पर होगा और उस जमीन के कब्जे को लेकर जिससे सरकार या अन्य किसी और का कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि 700 परिवारों का विनाश होगा ।


बहरहाल मामला न्यायालय में चल रहा है और नगला वासियों की कोई सुनवाई नहीं हो रही । जिला प्रशासन पूरी ताकत के साथ नगला को अतिक्रमणमुक्त करवाना चाहता है वही दूसरी तरफ नगला निवासी अपने घरों को बचाने के लिए लगातार सरकार और न्यायालय से गुहार लगा रहे है और न्याय न मिलने पर जल्द ही समूहिक आंदोलन की तैयारी में है ।


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