जून 2020 में हुई गलवान हिंसा के बाद से ही भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है. वर्तमान में गृह मंत्री अमित शाह अरुणाचल प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर हैं. चीन को इससे भी मिर्ची लगी है. चीन ने कहा है कि भारत के गृह मंत्री के अरुणाचल प्रदेश आने से उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन हुआ है. अरुणाचल प्रदेश की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन अपना दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है. चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच भारत ड्रैगन को झटका देने की तैयारी में है.
दरअसल, तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत आयात क्षेत्र में चीन पर अपनी निर्भरता कम रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत चीन से टेलीकॉम इंस्ट्रूमेंट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीद कम करने पर जोर दे रहा है. इसके बजाय भारत चीन को हमेशा आंख दिखाते ताइवान से आयात कर रहा है.
चीन की अर्थव्यवस्था में इलेक्ट्रॉनिक निर्यात का बहुत बड़ा योगदान है. चीनी शहर शेन्जेन को दुनिया की इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट्स का घर कहा जाता है. भारत को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्यात करने वाले देशों में चीन प्रमुख देश है. इससे स्पष्ट है कि भारत चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने पर जोर दे रहा है.
भारतीय आयात में चीन की हिस्सेदारी घटी
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत द्वारा किए जा रहे हाई-टेक इंपोर्ट में भले ही चीन भारत के लिए प्रमुख सप्लायर रहा. लेकिन अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के दौरान चीन की हिस्सेदारी पिछले साल के आंकड़े 45.8 प्रतिशत से घटकर 43 प्रतिशत हो गई. जबकि ताइवान की हिस्सेदारी एक साल पहले के आंकड़े 2.3 प्रतिशत से बढ़कर 9 प्रतिशत हो गई है.
वहीं, टेलीकॉम इंस्ट्रूमेंट आयात की बात करें तो चीन से आयात में सिर्फ 0.8 फीसदी की वृद्धि देखी गई है, जबकि ताइवान से टेलीकॉम इंस्ट्रूमेंट आयात में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत के टेलीकॉम इंस्ट्रूमेंट आयात में ताइवान की बढ़ती हिस्सेदारी इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि भारत ने भी इस अवधि के दौरान आयात बढ़ाया है. कुल टेलीकॉम इंस्ट्रूमेंट आयात में 7.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और भारत ने चीन के बजाय ताइवान को प्राथमिकता दी है.
इसी तरह, अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के दौरान भारत के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात में ताइवान की हिस्सेदारी दोगुनी होकर 6 प्रतिशत हो गई है, जबकि चीन की हिस्सेदारी में लगभग 14 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है. भारतीय इलेक्ट्रॉनिक आयात में अब चीन की हिस्सेदारी सिर्फ 31.8 प्रतिशत रह गई है.
चीन पर निर्भरता कम करने की तैयारी
वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के कारण भारत पर बन रहे व्यापारिक निर्यात दबाव के बीच भारत सरकार गैर-जरूरी आयात पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है. चीन से कुल आयात की बात की जाए तो अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के दौरान भले ही चीन से कुल आयात में 6.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 15.5 प्रतिशत से घटकर 13.8 प्रतिशत रह गई है.
मूल्य के लिहाज से देखा जाए तो इस अवधि के दौरान भारत ने चीन से 29 प्रतिशत कम राशि का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आयात किया है. भारत ने इस अवधि के दौरान चीन से 7.4 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदा. वहीं, ताइवान से इलेक्ट्रॉनिक आयात बढ़कर 1.3 अरब डॉलर हो गया. इस अवधि के दौरान भारत ने ताइवान से लगभग एक अरब डॉलर का मोबाइल डिस्प्ले स्क्रीन और लगभग 0.9 अरब डॉलर का चिप्स आयात किया.
वहीं, कुल आायत की बात की जाए तो भारत ने पिछले साल की तुलना में ताइवान से 34 प्रतिशत ज्यादा का आयात किया है. भारत ने इस अवधि के दौरान ताइवान से कुल 7.5 अरब का सामान आयात किया. हालांकि, चीन से आयात में भी 6.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन भारत के कुल आयात में उसकी हिस्सेदारी 15.5 प्रतिशत से घटकर 13.8 प्रतिशत रह गई है. हाई टेक वस्तुओं के आयात के लिए ताइवान पर बढ़ती निर्भरता का एक कारण चीन के साथ सीमा विवाद और उसके कारण उत्पन्न चेन सप्लाई में दिक्कतें हो सकती हैं.
भारत ‘वन चाइना पॉलिसी ‘ (One China Policy) पर बरकरार
तिब्बत की तरह ही ताइवान पर भी चीन ‘वन चाइना पॉलिसी’ के तहत अपना कब्जा जमाता है, लेकिन ताइवान खुद को एक अलग देश बताता है. हालांकि, चीन की ओर से लगातार विवादित बयान और उकसावे के बावजूद भारत ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ को समर्थन बरकरार रखा है. ताइवान मुद्दों पर अपने बयानों में भारत संयम बरतता रहा है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने फरवरी में संसद को बताया था कि ताइवान पर भारत सरकार की नीति स्पष्ट है. भारत सरकार व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में बातचीत को प्रमोट करती है.
सरकार ने 5G सेवाओं के रोल-आउट में भी ताइवान से किसी तरह की मदद से इनकार किया है. हालांकि, ताइवान की कंपनियां भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफ्रेक्चरिंग और सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं.
भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर
जून 2020 में हुई गलवान हिंसा के बाद से ही भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है. इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. भारत चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी बॉर्डर साझा करता है. पूरी तरह से सीमांकन नहीं होने की वजह से कई इलाकों में भारत और चीन के बीच मतभेद हैं. चीन भारत के हजारों किलोमीटर हिस्से पर अपना दावा करता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन अपना दावा करता है. चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है. चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच 1914 में तय हुई मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है. हाल ही में चीन ने अरुणाचल के कुछ स्थानों का नाम भी बदला है. जबकि, भारत की ओर से साफ किया जा चुका है कि अरुणाचल भारत का अटूट हिस्सा है.
गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल दौरे पर विरोध जता रहे चीन को अमित शाह ने करारा जवाब दिया है. अरुणाचल प्रदेश में वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम को लॉन्च करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की जमीन को हथियाने का जमाना अब चला गया है. चीन का नाम लिए बिना अमित शाह ने कहा कि सुई की नोक जितनी भी भारतीय जमीन कोई नहीं ले सकता.