बड़ी खबर : बंद होने की अफवाहों के बीच, “गीता प्रेस” गोरखपुर को मिलेगा “गाँधी पुरस्कार”, एक महीने में 8 करोड़ से ज्यादा बिक्री का बना चुकी है गीता प्रेस, हर धार्मिक ग्रंथ के प्रकाशन का है श्रेय!

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गीता प्रेस को हर सनातनी अच्छी तरह जानता होगा। हर हिंदू घर में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित धर्म ग्रन्थ अवश्य रखे होंगे। गोरखपुर में गीता प्रेस महाभारत, रामायण, राम चरितमानस और भगवद गीता से लेकर 1923 में अपनी स्थापना के बाद से 14 से अधिक भाषाओं में हिंदू घरों में मनाए जाने वाले अनुष्ठानों पर 70 करोड़ से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए गौरव का स्थान रखता है। दुनिया मे सबसे बड़े और प्रतिष्ठित प्रकाशकों में गीता प्रेस की गिनती होती है। गीता प्रेस को इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कई दिनों के विचार विमर्श के बाद सर्वसम्मति से गांधी शांति पुरुस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। इस फैसले को लेकर संस्कृति मंत्रालय ने घोषणा भी कर दी है। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है चाहे उसकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो. मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला / हथकरघा वस्तु शामिल है.

हाल के समय में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान, बांग्लादेश (2020) को यह पुरस्कार दिया गया है।

वहीं पीएम मोदी ने भी रविवार 18 जून को ट्वीट किया कि, “लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में गीता प्रेस ने पिछले 100 वर्षों में सराहनीय काम किया है. मैं गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किए जाने पर बधाई देता हूं.’ “

आपको बता दें कि गीताप्रेस ने 98 वर्षों में साल 2021 में पांच महीनों में ही गीता प्रेस ने रिकार्ड तोड़ बिक्री कर दी थी। उस साल जुलाई से नवंबर तक सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकों की बिक्री हुई है। इसमें अक्टूबर में सबसे बड़ा रिकार्ड कायम हुआ था। अक्टूबर माह में 8.67 करोड़ रुपये की बिक्री हुई जो कि गीताप्रेस के 1923 से लेकर अब तक किसी एक माह नहीं हुई है।

गौरतलब है कि गांधी शांति पुरस्कार स्वर्गीय डॉ. नेल्सन मंडेला, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति, डॉ. जूलियस न्येरेरे, तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति, डॉ. ए. टी. अरियारत्ने, सर्वोदय श्रमदान आंदोलन, श्रीलंका के संस्थापक अध्यक्ष, डॉ. गेरहार्ड फिशर, जर्मनी संघीय गणराज्य, बाबा आमटे, डॉ. जॉन ह्यूम, आयरलैंड, वाक्लेव हवेल, चेकोस्लोवाकिया के पूर्व राष्ट्रपति, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप डेसमंड टूटू, चंडी प्रसाद भट्ट और योही ससाकावा जापान को दिया जा चुका है।


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