शुक्रवार को ऊधमसिंह नगर कांग्रेस नें जहाँ रुद्रपुर में जिला कार्यकर्त्ता सम्मेलन किया वहीं एक निवर्तमान पार्षद और कुछ छुटभइय्या नेताओं द्वारा पत्रकारों से ही बदसलूकी करने से जहाँ सम्मेलन की किरकिरी तो हुई ही वहीं सभी पत्रकारों नें शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार किया जो सोशल मीडिया पर छा गया। वहीं कई नेताओं के पुंछल्ले नेताओं नें अपने आकाओं की तारीफे पाने के लिए सोशल मीडिया पर ही पत्रकारों के खिलाफ उलटी सीधी पोस्टे डालनी शुरू कर दीं। जिनसे उनके आकाओं नें तो शायद उनकी पीठ थप थपा दी हो पर वास्तविकता में कार्यक्रम की समीक्षा करने के बजाय और जो जसपुर के विधायक आदेश चौहान और और ग़दरपुर के विधायक प्रत्याशी प्रेमानन्द महाजन नें कार्यक्रम के मंच से ही पार्टी की अंतर कलह की पोल खोल दी उस पर विचार विमर्श करने के बजाय और समय रहते आपसी मनमुटाव ख़त्म करने पर भी सोचने के बजाय सीधी लड़ाई फेसबुक पर पत्रकारों के खिलाफ शुरू कर दी।
जो कहीं ना कहीं कांग्रेस विधायक आदेश चौहान के शब्दों को चरितार्थ करता दिख भी रहा है जो मंच से विधायक आदेश चौहान नें कहा की इस तरह उद्देश्य से भटक कर चलने से कांग्रेस पार्टी 5 तो क्या 1 भी सीट नहीं जीत सकती।
खैर कांग्रेस अपने मंचों से बीजेपी को भले ही जुमले बाज और सपने दिखाने वाली पार्टी कहती हो पर धरातल पर भले ही कुछ समय के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता छोटे कार्यकर्त्ताओ को बड़े बड़े जुमले देकर ख़ुश कर देती हो पर कार्यक्रमों के समापन के बाद उद्देश्य से भटक उनके हौसलों की हवा भी खुद ही निकाल देती है और यही वजह है कि ऊधमसिंह नगर की कांग्रेस आत्म मंथन करने के बजाय हवा बाजी और सोशल मीडिया में फोटो बाजी तक ही सीमित रह गई है।
जिसके बाद चुनावों में विपरीत परिणाम आने के बाद दोष देनें के लिए उनके पास एक EVM बेचारी तो बच ही जाती है।
सबसे बड़ा हास्य और विचारणीय बात ये भी है की जहाँ विरोध होने पर कांग्रेस के कुछ नेता फेसबुक और पोर्टल के पत्रकारों को केवल सोशल मीडिया का छोटा सा पत्रकार मानती है वहीं खुद कांग्रेस पार्टी का हर एक छोटा बड़ा नेता अपनी फोटो और खबरें सबसे ज्यादा इन पोर्टलों और सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर कर पाता है। और उन्हें खुद के सोशल मीडिया के पैजो और ग्रुपो के माध्यम से शेयर भी करते हैं। जिस से उनकी उनके लोगों के बीच वाह वाही बनी रहे। फिर वास्तविकता दिखाने पर इन सोशल मीडिया के पत्रकारों का विरोध क्यू? सवालों से मुँह तो मोड़ा जा सकता है पर उस से वास्तविकता नहीं बदली जा सकती।
2014 में प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव जीतने के पीछे उनकी सोशल मीडिया पर मजबूत पकड़ भी एक मुख्य कारण था तो वहीं आज देश का हर एक मुखपत्र अपना अपना सोशल मीडिया पेज और पोर्टल बना कर समय के साथ पेपर से खबरों ( सूचना ) की डिजिटल क्रांति को स्वीकार कर चुका है।
पर जब तक कांग्रेस के नेता इस क्रांति और वक्त के साथ बदलाव को नहीं स्वीकारेंगे और उदेश्य से भटक कर पत्रकारों के खिलाफ अपनी ऊर्जा को नष्ट करेंगे तब तक वो अपने कार्यक्रम के मंचों पर ही अपने जीत के दावे भर करती रह जाएगी जो उनकी विपक्षी पार्टी हमेशा से चाहती भी है।